Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिसको समझ रहे हीरा मोती

 

जिसको समझे हम हीरा मोती।
हो सकता वो आँखों का भ्रम हो।
किसी अघोरी की चाल रही हो।
खेला वो कोई रंगमंच हो।

 

सोने को ढेला बना दिया हो।
ढेले ने सोना रूप लिया हो।
कौड़ी में बिकने वाला मोती,
आज नर नारी लुभा रहा हो।

 

हो सकता उसी अघोरी ने इक,
माया प्रपंच स्वप्न में रचा हो।
हमको भ्रमित करने के खातिर,
उसने ही सब ये स्वांग रचा हो।

 

हम तो तिनके पर मरते मिटते।
मायापति सब देख रहा होगा।
हमारी मूर्ख गतिविधियों पर वो,
लोट लोट कर हँस रहा होगा।

 

कल जिसको मैं कहता अपना था।
नाम वहाँ किसी और का छपना ।
सीने लगाकर जिसे रोता था,
अब उसको हाँ नीलामी होना।

 

सब उस अघोरी का रंगमन्च है।
सब उस अघोरी का रंगमन्च है।

 

 

 

---प्रणव मिश्र'तेजस'

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