हे निराकार,हे प्रकाशवान
आदि अंत के प्रणेता तुम
मेरे अंदर विद्यमान ऊर्जा
और ऊर्जा के विजेता तुम
कहाँ हो.....?
मैं जनता हूँ की भीतर हो
और बहुत ही सरल भी
प्रकाश की हर किरण में
और घोर अंधकार में भी
पर कहाँ हो......?
कितना समय व्यर्थ हुआ
तुम्हारी प्रतीक्षा में रे प्रभु
तुम वहाँ से आये नही हो
कहाँ तक पहुँचे हो रे प्रभु
कहाँ हो......?
सालों से ध्यान में बैठा हूँ
रंग बिरंगे रंग दिखाते हो
ब्राह्मण दिखा कर मुझे तुम
झूठी बातें सिखलाते हो
बोलो कहाँ हो.......?
मैं अनन्त का टूटा तारा
तुम मेरी गति-दिशा हो
मुझे स्वयं में विलय करो
तुम्ही अंतिम आशा हो
कहाँ हो.......?
किस मूर्ति के आगे रोऊँ
सब झूठी और स्वार्थी है
एक तुम्ही अदृश्य हो जी
तुम अन्तस् के अर्थी हो
ओ प्रभु कहाँ हो.......?
बीमारियाँ ग्रसित करती
मोह पाश माया बुनती
मुझे देखो जड़ समझती
बोली प्रभु औ तुम झूठे हो
अब बोलो तुम कहाँ हो?
©प्रणव मिश्र'तेजस'
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