बाबूजी कुछ देर देखो ,
जीकर ढलती जवानी।
चलने में पाँव दुखते हैं,
गई आँखों की रौशनी।
जब मैं काम का न रहा,
कूड़ा समझ फेंक दिया।
मेरे बेटों ने ऐसे ही मेरा,
पितृ ऋण उतार दिया।
आज आसमान ओढ़ता,
जमीं बिस्तर हूँ लेटता।
साहब मैं तो अक्सर ही,
बिना खाना खाये सोता।
बारिस में मस्त हो भीगते,
क्योंकि तुम्हारे इक घर है।
मैं भी बारिस में हूँ भीगता,
क्योंकि ये बूढ़ा बेघर है।
मैंने चंद सिक्के मांगे तुम,
आँख हो दिखाते मुझको।
मैं दुआ करता हूँ जाओ,
बेटे अच्छे मिले तुमको।
---प्रणव मिश्र'तेजस'
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