Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं निर्मोही

 

 

मैं निर्मोही जगत असत्य है
का भाष्य किया करता हूँ।
फिर भी जाकर उसी जाल में
माया पाश बुना करता हूँ।

 

 

या तो प्रभु सत्य है या माया
सब उत्तर इसका खोजिये
या काट दीजिये बंधन अपने
इन ढकोसलों को तोडिये

 

 

नही मिलती शांति मुझे अब
दिया-धूपबत्ती जलाने से
क्या प्रभु देता है दर्शन सिर्फ
कंठी माला लटकाने से

 

 

प्रभु जी कितना मन अंधकार
मूर्ति में तुमको पूजता हूँ
घर बाहर कुत्ता मरा जाता है
डंडे से उसको मरता हूँ

 

 

जान लिया तत्व को मैंने अब
संयासी होना चाहता हूँ
अग्नि रूप उन वलकल को
देह सौपना चाहता हूँ

 

 

इसपर भी रे समाज मुझको
पलायनवादी कहता फिरता
तुम जाने कहाँ छिपे बैठे हो
आँख मूँद तुमको मैं ढूँढता

 

 

एक और मिनट की यदि देरी
की तुमने मुझ तक आने में
रो रो कर सुन लो घर भर दूँगा
तुम्हे मज़ा आयेगा पछताने में

 

 


©प्रणव मिश्र'तेजस'

 

 

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