Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं वहाँ से आया

 

 

रे मैं जिस मण्डल से हूँ आया
वहाँ सूर्य चन्द्र का काम नही
अलोको के अलोक से आलोकित
अव्यक्त ब्रह्म का नाम नही।

 

बहती जहाँ नित नित नूतन
आनन्द-उमंग-प्रेम हिलोरे
न कोई माया बिनु मोह पाश के
फिर भी सबके रिश्ते गहरे

 

क्या होता है अंतर मैं देखो
अब तक ज्ञात न कर पाया
तब प्रकृति ने मुझको तत्वों की
उलझन में तुरत उलझाया

 

रे वो प्रकृति भी मैं ही हूँ पगले
जो मेरी अविद्या से व्यक्त हुई
मुझको तत्व भेद बतलाने जो यूँ
पञ्च तत्व में इतर विभक्त हुई

 

हाँ मैं तत्वों से ऊपर तत्व मूल
अजन्मा-अजर परमात्मा हूँ।
प्राणी-प्राणी के घट-घट अंतर की
अद्भुत अमर "आत्मा"हूँ।

 

मुझको तुम जीवनांश कहो
या कह दो तुम अविनाशी
आपस में तुम सब भेद भूल जाओ
ओ स्वार्थी मनुज सुखाशी

 

 


©प्रणव मिश्र'तेजस'

 

 

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