मन में गहरा बुखार लिये
बीतीं यादों का भार लिये
क्या जानो कितना रोये हैं
बैठे यादों का सार लिये।
पगले मन को समझा कर
अपनत्व का पाठ पढ़ाकर
जीत लिया था मन को मेरे
तुमने मुझको यूँ हँसाकर
कविता से लेकर मुझ तक
तुझको ही अधिकार मिला
सब कुछ अपना तुझे सौंप
क्यों मुझको प्रतिकार मिला
तेरे उन कोरे-कोरे वादों को
संग तेरी मेरी तस्वीरों को
न जाने क्यों संजोये बैठे हैं
तेरी उन फरेबी बातों को
रे बातों का मसला हल करो
छाई मन आकुलता दूर करो
अब तान नई छेड़ों कवि जी
नया रच व्याकुलता दूर करो।।
---प्रणव मिश्र'तेजस'
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