Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मुक्ति की आस

 

माया मुझको नही सोहाती
प्रभु बन्धन सारे तोड़ चुका
इहलोक और परलोक का
ज्ञान स्वयं में हूँ जोड़ चुका

 

नर नश्वर जीव अविनाशी
बात पते की जानता हूँ
फिर न जाने क्यों छत्ते पर
मधु जीवन ढूँढता हूँ

 

प्रतिपल ठोंकर दुनिया से
स्वार्थ भरा है रिश्तों में
तृष्णा का हूँ आहार बना
देखो पल पल किश्तों में

 

प्रभु शक्ति मिली मुझको
फिर भी शक्तिहीन हूँ
सबकुछ मेरे ही तो अंदर
फिर भी बुद्धिहीन हूँ

 

हे मधुसूदन हे मायापति
मेरा तुम अब उद्धार करो
क्षण भर की माया नगरी
ओ प्रभु भवसागर पार करो

 

 

--प्रणव मिश्र'तेजस'

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ