नारी तुम तो शक्ति पुंज हो,
मैं अलसाई हुई किरण हूँ।
राष्ट्र चेतना की प्रतीति तुम
मैं बस एक अचेतन मन हूँ।
शारद की प्रतिरूप तुम्ही हो,
ज्ञानपूर्ण ये जग कर डाला
तुम्हीं चंडिका रुद्र तुम्ही हो,
असुर वंश का वध कर डाला
मैं कहता परमाणु सदृश हो
समझौता सब से हो करती
पर यद्यपि तुम कभी कुपित हो,
निश्चित रूप प्रलय ला धरती
धन्य तुम्हारी कोख सुमाता,
जन्म दिया शौर्य प्रतिमानों को।
कहें तुम्हारी कितनी करुणा,
दूर रखा हर अभिमानों को।
तुझ पर कुछ एहसान जताऊं
तो ये मेरी कृतघ्नता है।
ज्ञापित जो आभार करूँ तो
मेरी मूर्ख विदूषकता है
जीवन के प्रतिपल में माता
भिन्न रूप धर कर तुम आई।
अपना सबकुछ हमको देकर
क्षण भर कभी नहीं इतराई।
तुम बिन ये संसार शून्य है,
कालचक्र गति न कर पाए
प्रणव भी अपने प्राण-तत्व को
चाह चाह कर चाह न पाए
फिर भी सबको प्रेयसि प्यारी,
क्यों मारें सब बिटिया प्यारी
भ्रूणों की हत्या तो सुन लो
सखा पाप की भागीदारी।
प्रणव मिश्र'तेजस'
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