हे पीड़ा के देवता मुझको पीड़ा दो
दर्द दो दुःख दो असहनीय अनंत दो
इतनी की मेरी हर स्वास् कराह से
बार बार आये और मानो रुकती जाये
मेरी आँखों में धुंधला प्रकाश सा छाये
पल के भीतर ही मैं अनन्त बार मरुँ
और स्वास् में ही मैं मृत्यु-दुःख-जीवन से
संघर्ष करूँ ,बार-बार,अनन्त बार,अनवरत
इस बार जब मेरे अपने सैकड़ो बार यूँ ही
मुझको मरते -जीते-हारते- लड़ते देखे और
मेरे दर्द को आंशिक रूप से भी महसूस करें
तब वे उस दर्द कर अनुभव करें जो वे......
वर्षों से दूसरों को देते आये।
उस कुत्ते को बेवजह मारने से उसकी टाँग
टूट गई होगी......
उस पक्षी का एक पैर जिस से वो चला नही फिर कभी....दोबारा
उस बकरे की बेवजह चाकू से हत्या...
उस वास्तविक भिखारी को दुत्कार.....
अनेकों बार......
हे देवता वो सारा दर्द मुझे दो और उनको
दर्द मुक्त करो....मुझे यूँ संवेदना से न मार
मैं अनुरक्ति और मोह से परे की निर्जीव काष्ठ हूँ
मुझको संवेदना का उपहार देकर मनुष्य मत बना
हे पीड़ा के देवता मुझको पीड़ा दो.....
बस अनन्त पीड़ा दो....
--प्रणव मिश्र'तेजस'
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY