Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्रिये

 

 

आज शब्दों में खत्म होगी
क्या ऐसी हमारी कहानी है
दो देहों का मिलन ही केवल
प्यार की निशानी है?

 

प्रिये अति दुःसह है लेकर
जीना एकाकीपन का भार
क्या उचित है समझना
स्मृतियों को जीवन सार?

 

मैं गगन चूमने वाला पक्षी
आज पर हीन हुआ गिरता
अरे सुमुखि तेरी अलकों में
मैं रोज रोज ही जा फंसता

 

लगा रहा हूँ तेरे भोलेपन का
मैं निज प्राणों से मान प्रिये
कैसे तुम आई और छल गई
है तुमको न अभिमान प्रिये?

 

मैं तिल-तिल रोज मिटाता हूँ
कल्पना जो तुम संग जीती थी
आज असफलता को कहती
तुम बिन एकाकी मरती थी

 

संकोच ही मेरा दीवानापन
हृदय एक संगीत छुपा था
कानो से कोई न सुन पाता
हर इक स्वर प्रेम झपा था

 

तुमको लय करने की उत्सुकता
मेरे हृदय में बरसों से ठहरी थी
तुम इसे यौवन मादकता समझी
ये बात मुझे अबतक अखरी थी

 

बुरा न मानो कुछ कहता हूँ
तुम समझ न पाई जीवन को
प्यार की परिभाषा मालूम न
हंसता हूँ तुम बड़ी नादान हो

 

कल खींच लाई तुम मुझको
आज खींचती चाह तुम्हारी
ले जाओ अपनी स्मृतियाँ हमसे
हमे सहन न होती आह हमारी

 

 

 

©प्रणव मिश्र'तेजस'

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