Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्रिये

 

 

अनिमेष दृगों से देख रहा
टूट रही जीवन माला को
क्या क्या स्वप्न संजोये थे
हुए समर्पित रक्तांचल को

 

कल सहसा यह ज्ञात हुआ
नीरवता के बाद प्रिये!
मुझको भूलकर झुठलाकर
तुम थी करती याद प्रिये!

 

मेरे भाग्य में विधाता ने रचा
एक वियोग का गान प्रिये!
जीवन एकाकी से शुरू था
अब सूनेपन विलीन प्रिये!

 

विरह को सह न सका था
मन मेरा कोमल प्रिये!
छिपी हृदय की आग फूटी
ले शब्द शृंगार प्रिये!

 

तुम समझी मुझे भिक्षुक
देती संवेदना दान प्रिये!
समझा उसको तेरा प्रेम
मैं था कितना नादां प्रिये!

 

तुम न समझो अपना फिर
आकर दे दो ये मान प्रिये!
अंतिम मेरा क्षण नियराया
मिल गायें प्रणय गान प्रिये!

 

अब न मिल पाना होगा मेरा
हँसकर कर दो विदा प्रिये!
तुम जहाँ रहो खुशहाल रहो
मेरा यह आशीर्वाद प्रिये!

 

 

प्रणव मिश्र'तेजस'

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