साहब !!! गरीबी टेकती है।
घर-जिस्म औरत बेचती है।
भूखा मरा लड़का कि जिसका
वो आँख किसको ढूंढती है?
हाँ राम आएंगे बचाने
सीता यही बस सोंचती है
औ जिस्म के बाजार में फिर
सीता मर्यादा तोड़ती है।
इंसानियत रोने लगी तब
जब दर्द से वो देखती है।
लड़की कि जिसकी सिग्नलों पे
पैदा हो सिक्के मांगती है।
प्रणव मिश्र'तेजस'
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