साँसे जब रुक जायें।
चेतना शून्य हो जाये।
आत्मा देह मुक्ति पाकर,
कहीं विलीन हो जाये।
शब्द मौन ग्रहण करें।
कोलाहल से दूर रहे।
अपनों के अपनत्व को,
जब भूलना शुरू करें।
तब मेरा देखो दाह मत कर देना,
मुझको तुम शमशान सौप देना।
भेदभाव जहाँ मिट जाता ।
व्यक्ति हर पाश से छूटता।
राजा हो या रंक जहाँ,
अंत में संग में है लेटता।
फरमान नही जहाँ चलते।
झंझावात चक्र आ रुकते।
बस शांति ही शांति होती,
अघोरी जहाँ राज करते।
उस भूमि को समर्पित कर देना,
मुझको तुम शमशान सौप देना।
जहाँ छंद नही चल पायेंगे।
हम अतुकांत में ही गायेंगे।
भूत परेत के संग नाचकर,
हम अद्भुत गीत बनायेंगे।
इस लोक का उस लोक से
साकारता का निराकारता से
अज्ञानता का आत्मज्ञान से
होता जहाँ मिलन नये मार्ग से।
तुम उस चौखट विदा कर देना।
मुझको तुम शमशान सौप देना।
शिव जहाँ कण-कण बसते।
भूत यहाँ परेत सब हूकते।
ढ़ोंगी दुनिया के सब नियम,
यहाँ सब मिलकर तोड़ते।
उस स्वतन्त्रता में छोड़ना।
मुझको बन्धन मुक्त करना।
उस पीपल के पेड़ के नीचे,
मेरा पिण्ड तुम जा कर देना।
मेरी यादों का मरदन कर देना।
मुझको तुम शमशान सौप देना।
प्रणव मिश्र'तेजस'
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY