जहाँ मेरा बसेरा है वहाँ के लोग बिकते हैं।
अरे तुमसे ही कहता हूँ कि वो तुमसे ही दिखते हैं।
जरूरत पर जहाँ मिलती दुआएँ भी हैं सिक्को से
चला है धर्म का ठेका कि ठेकेदार रहते हैं।
अरे उछली कि इज्जत अब सरे बाज़ार कवियों की
सियासी मंच पर चढ़ के दिखे वो सिक्के चुनते हैं।
लगाते हो सुनो बोली कि उस रतनाम की यूँ ही
यहाँ सब हुस्न के ताले कि सिक्कों से ही खुलते हैं
झुकी है बाप की पगड़ी लुटे हैं रत्न आँसू के
अरे दुल्हन से ज्यादा अब हमे सिक्के ही जँचते हैं।
बड़ा ही दर्द होता है मुझे देखे ज़माने को
मुझे लगता यहाँ रिश्ते सिर्फ सिक्कों से चलते हैं।
नसीहत में मुझे दे के कि वो इक बात कहती थी
कि गीतों से नही "तेजस"सुनो रे झोले भरते हैं।
©प्रणव मिश्र'तेजस'
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