Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सुनो ऐ दिलरुबा

 
सुनो ऐ दिलरुबा
आदाब 
कैसी हो ?
मुझे मालूम है बेहतर ही होगी तुम 
ख़ुदा ने सब्र से तुमको बनाया है 
तुम इस दुनिया से बिलकुल मुख़्तलिफ़ सी हो 
तुम्हें वो दर्द जो औरों को बिलकुल तोड़ देते हैं
कहाँ कुछ कर ही पाते हैं ?
मुझे मालूम है तुम को
ज़रा भी मेरी यादें याद आती ही नहीं होंगी 
मगर मुझ से न पूछो तुम। 
मैं बिलकुल आम सा लड़का मुझे हर ग़म सिवा से और कुछ 
बढ़ कर हमेशा दर्द देता है
मगर अफ़सोस मत करना 
मैं बिलकुल ठीक हूँ इस दर्द से लबरेज़ हूँ 
आख़िर उदासी साथ रहती है 
गले में हाथ डाले राह चलती है उन्हीं राहों पे जिन पर तुम कभी
हाथों में हाथों को हिलाते साथ चलते थे 
ज़रा अफ़सोस मत करना 
मुझे ये दर्द की लज़्ज़त अजब ही लुत्फ़ देती है
हटाओ मेरी छोड़ो ये बताओ तुम अभी भी रात में सोने से पहले नींद की कितनी दवाएँ रोज़ खाती हो? 
तुम्हें अब नींद आती है ..?
यक़ीनन आती ही होगी किसी के छूट जाने से भला दुनिया कहीं रुकती ? 
मगर मैं आज भी उस वक़्त के लम्हे में ख़ुद को क़ैद पाता हूँ 
जहां पहली दफ़ा में मैं तुम्हारे साथ बैठा था
बला की ख़ूबसूरत एक लड़की फिर मुझे मेरी तरफ़ लाई 
मैं उन सारे बुतों का फिर पुजारी हो गया जिन पर मुझे ईमान रखना था
हमारे धर्म में कहते हैं हर ज़र्रे में ईश्वर है 
सो हर ज़र्रे से क्या मतलब ? तुम्हारी बात करता हूँ 
तुम्हारा नाम भी तो हक़नुमा रक्खा था मैंने 
तुम्हें आख़िर के वक़्तों में ये लगने लग गया था मैं किसी औरत की इज़्ज़त ही नहीं करता 
तुम्हारी भी नहीं करता 
मगर तुमको ख़ुदा से बढ़ के चाहा था 
न जाने क्यों ये बातें तुम समझ कर भी नहीं समझीं 
मगर छोड़ो ये बातें अब पुरानी हो गई हैं तुम बताओ 
और कैसी हो ?
तुम्हें क्या अब भी मेरी याद आती है? 
कोई जब शे’र पढ़ता है तुम्हें क्या याद आता है 
कि इक शायर तुम्हारे नाम पर नज़्में सुनाता था ?
~ तेजस

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