रे सारे रिश्ते तोड़ रहा हूँ
नेह के घड़े फोड़ रहा हूँ
दिलासा मत देना मुझको
मैं राह देखना छोड़ रहा हूँ
दुनिया;हैं कैसे रिश्ते हमारे?
क्या जन्म-साथी हैं तुम्हारे?
सुन मैं शिव भक्त हूँ पुराना
भक्त नही होते किसी सहारे
मुझे , एकाकी जीवन भाता
रिश्ते का बोझ नही रखता
इज्जत देना न आये मुझको
मुँह पर मैं हूँ बेबाक बोलता
इस पर भी तुम कुछ बोलोगे
मुझे नैतिक मूल्यों पे तौलोगे
घमण्डी मेरा सम्बोधन देकर
रे विष मेरे हृदय तुम घोलोगे
इसलिए सुनो आज हूँ बोलता
बन्धन सारे मैं चौराहे फेंकता
संतुष्टि है मुझको इसपर भी
नही मैं ढोंगियों सा हूँ जीता।
मुझे बस फक्कड़ता आती है।
इसी से दुनिया मैंने जीती है।
घुट कर जीने से ही शायद,
दुनिया शराब बहुत पीती है।
©प्रणव मिश्र'तेजस'
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