Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुम्हारी दासता मुझको स्वीकार्य नही

 

 

तुम्हारी दासता मुझको स्वीकार्य नही,
तुम्हारी दासता मुखको स्वीकार्य नही।
उन्मुक्त गगन के पंक्षी को पिंजर चाह नही,
तुम्हारी दासता मुझको स्वीकार्य नही।
प्रणय निवेदन तुम्हारा,मन त्याज्य भी नही।
पर बंधनो में बंधना, मेरा पर्याय नही।
तुम्हारी दासता मुझको स्वीकार्य नही।
विष बुझे को अमृत की चाह भी नही,
और शिथिलता सन्यासी की मृत्यु तो नही।
बावजूद इसके अपनों की चाह नही।
और दासता तुम्हारी मान्य भी नही,
तुम्हारी दासता मुझको स्वीकार्य नही।
मेरा नदी सम प्रसारत दिगंत सही।
पर तड़िग सम अंतक मुझको प्रिय नही।
तुम्हारी दासता मुझको स्वीकार्य नही।
प्रेम झूठ है,अपनत्व व्यर्थ है ज्ञात सही,
प्रीति फिर भी हाँड से,क्या मूर्खता नही।
विश्व मेरा है , पर मैं न था इसका,नही।
तुम्हारी दासता मुझको स्वीकार्य नही।
तुम्हारी दासता मुझको स्वीकार्य नही।
अथक प्रयासों का मेहनतफल, न सही।
पर सिफारिस की मुझको जरूरत नही।
छंदहीन लेखनी मेरी खंडित ही सही।
मैं संभ्रांत नही कुकर्मी मानुष ही सही।
किन्तु तुम्हारी गुलामी,नही नही नही।
तुम्हारी दासता मुझको स्वीकार्य नही।

 

 

 

प्रणव मिश्र'तेजस'

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