एक सदी बीतने पर
उसका खत आया।
मैं जिन्दा हूँ या मुर्दा
पता लगाने आया।
लिखा,"मैं तेरी ही हूँ"
फिर क्यों खत उसका
बेवफाई निभाने आया
एक सदी बीती, आज खत आया।
वही पुरानी यादे दे के
वो जख़्म कुरेदता है।
मेरे गुप्त सम्बोधन से
रे वो पत्र पुकारता है।
फिर यादों के बगीचे में
सफर मुझे करा कर
दर्द से यूँ कराहता है।
एक सदी बीती, दिल आज रोता है।
उम्मीदों का साया देख
फिर पलने लगा था।
मन कोरे से हवा महल
अब बुनने लगा था।
जब अंत में पढ़ा मैंने की
"ख्याल अपना रखना"
यूँ ही दिल टूटने लगा था
एक सदी बीती,मैं ज़हर पीने लगा था।
©प्रणव मिश्र'तेजस'
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