Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उषा आगमन

 

पुष्पों पर तिरती थी नैया
ओसों की बूंदों की शैया
ओझल होता था नैनों से
वह नौका का नाविक भैया

 

डूबी अवनि रक्तांचल में
पड़ गया विहग इस क्रीड़ा में
वृक्षो पे लतायें झूमे हैं
गाती गाने इस व्रीड़ा के

 

तुम बिन प्रेयसि सूनापन था
हृदय-सदन निर्जनवन था
सब अपने थे फिर भी प्यारी!
लगता झूठा .अपनापन था

 

 

©प्रणव मिश्र'तेजस'

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