Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वेदनाएं

 

 

भरी पड़ी है कुछ वेदनायें,
अश्कों की वारिद मालायें।
हर बार मनोरथ की मैंने,
मिली अक्सर असफलतायें।

 

भरी पड़ी है...................वारिद मालायें।

 

चित चकोर मन है चंचल,
भाग रहा चहुँ ओर विकल।
क्या जतन कर डालूँ बोलो!
पा लूँ जाके पथ कोई निर्मल।

 

भरी पड़ी है.............वारिद मालायें।

 

है देखो अज्ञान बड़ा,
अहं कहता ज्ञान बड़ा।
गुरु बात कभी न मानी,
अब देखो पछताना पड़ा।

 

भरी पड़ी है.............वारिद मालायें।

 

जाग जाग कर स्वपन बुने,
दिन होने पर मन की सुने।
हिम पर पहुँच अचरज मिटे,
ऐसे है मेरे अनोखे भाग्य गुने।

 

भरी पड़ी है.............वारिद मालायें।

 

किसको मिलने को विकल,
किस हेतु अब मन है चंचल।
ये बात देखो समझ न आई,
अब भी चितवत व्योम सजल।

 

भरी पड़ी है.............वारिद मालायें।

 

किस पथ चलूँ ज्ञात नही,
मानव हूँ यह पर्याप्त नही।
उस राह चलो चल के देखूं,
लक्ष्य ही अब अज्ञात सही।

 

भरी पड़ी है.............वारिद मालायें।

 

 

प्रणव मिश्र'तेजस'

 

 

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