Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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व्यथित हूँ प्रश्नों से घिरा मन

 

व्यथित हूँ प्रश्नों से घिरा मन
आत्म-अज्ञान होता न सहन
स्याह रात अन्तस में पलती
उठे प्रश्नों की कुंठा सहती
लगता शत्रु कोई घुस आया
नित्य मिटाता है मेरी काया
लिए शमशीर बस हो खड़ा
करे मन पर प्रतिघात बड़ा
मन भी अकुलाकर बोला है
व्याकुलता का दर्द घोला है

 

की हे प्रकाश देवता तुम कहाँ?

 

देखो तुम्हारी राह में कौन है?
खिले फूल तुम बिन मौन है।
कलियों पर ओस बूँद बिठाये
सदियों पुरानी बातें हैं छुपाये
आओ इनसे हाल जान लो
कुछ कहना है इनकी मान लो
चिड़िया चहक आकाश गई
मानो तेरा सन्देश बतला रही
मुझे समझ कुछ नही आता
वो शत्रु हरपल मुझे मिटाता

 

ओ!!!प्रकाश देवता तुम कहाँ?

 

आओ अपना प्रकाश छिटकाओ
इक चमत्कार मुझे दिखलाओ
भूल चुका ज्ञान सदियों पहले
उस भूले ज्ञान को फिर बतलाओ

 

हे प्रकाश देवता जल्दी आओ...।

 

 

---प्रणव मिश्र'तेजस'

 

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