अंत से नकलती
अनन्त को जाती
दूर आहट आती
मुझ को है डरती
अलबेली लगती
कौतुक है करती
बात मन कहती
फिर शांति आती
ये बात आखिर क्या है?
संसार कोई चलता
व्यपार कोई बढ़ाता
सत्य क्यों जीतता
झूठ है क्यों हरता
मन मेरा बहकता
जाने क्या बकता
स्थिर न रहता
कुछ तो है कहता
ये बात आखिर क्या है?
वन कुछ बतला रहे
ग्रह नित्य डोल रहे
तारे क्यों चमक रहे
बात कोई कह रहे
यायावर जा रहे
यायावर आ रहे
क्यों गति कर रहे
न स्थिर रह रहे
ये बात आखिर क्या है?
शिशु जन्म लेते है
मृत्यु फिर पाते है
पेड़ क्यों हिलते है
हम धन बनाते है
उसी पर मरते है
जीतते -हारते है
संतोष न पाते है
मूर्ख क्यों बनते है
ये बात आखिर क्या है?
गोल क्यों गोल है?
क्या तेरा भूगोल है?
शिव तो अनमोल है
क्या तेरा मोल है?
ये सब लगता जाल है
हे प्रभो क्या जंजाल है
माया का क्या खेल है
सब झोल है झोल है
प्रणव मिश्र'तेजस'
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