ये रवि,शशि और विद्युत अभिव्यक्ति न देते,
महज उस प्रकाश का प्रतिबिम्ब लिये फिरते।
जो तुम में भी और तुमसे परे है,
जो विश्व के कर्मों का करता है।
जो सब के पैरों में समां कर इक्षा से चलता है।
उसकी आरधना करो,
व्यर्थ आडम्बर छोड़ दो।
जो तुम सब के मन में बैठा,
प्राण में,
श्वास में,
व्याप्त घट और आकाश में।
सागर तरंगों के आधार में।
उसकी आराधना करो,
व्यर्थ आडम्बर छोड़ दो।
जो एक साथ रहता ऊँच भी और नीच भी।
पापियों और महात्मा,इंसान के बीच भी।
एक ही है
दृश्यमान है
ज्ञेय भी है
वही मेरा सत्य है
उसकी आराधना करो,
व्यर्थ आडम्बर छोड़ दो।
आश्चर्य करो जो अतीत जीवन से मुक्त है
भूत-भविष्य के जन्म-मरण से कोशों परे है
जो मेरी स्थितिज है
जिसमे हम स्थित है
जो सर्वदा निर्विकार है
उसकी आराधना करो,
व्यर्थ आडम्बर छोड़ दो।
अरे मुर्ख!!उसकी उपेक्षा कर रहे????
प्रतिबिम्बों से पूर्ण है विश्व जिसके।
काल्पनिक छायाओं को छोड़ दो
विघटित मन का रुख मोड़ दो
जो सामने दिख रहा तुम्हे
बस उसकी का पूजन करो
उसकी आराधना करो,
व्यर्थ आडम्बर छोड़ दो।
--प्रणव मिश्र'तेजस'
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