संकल्प श्रोत्रिय मैं अभी ‘गूगल फोटोज़’ में तुम्हारा और अपना कोई फोटो तलाश रहा था। रस्म है जन्मदिन पर फोटो लगाकर बधाई देने की। तुम्हारा यह मित्र तुम्हें इस रस्म से महरूम रखेगा। अभी मस्तिष्क बहुत उलझा हुआ है, तुम्हारे जीवन की तरह तरल और सरल नहीं है। खोज नहीं पा रहा हूँ अपने और तुम्हारे साथ के वो क्षण जहाँ दो मित्र मस्ती में थे।
मुझे मीर का वो शेर तुम्हारे लिए याद आ रहा है
हम फ़क़ीरों से बेअदाई क्या
आन बैठे जो तुमने याद किया (स्मृति आधार)
तुम्हारा स्वभाव भी किसी पहुँचे हुए फ़क़ीर से कम नहीं। हम में एक समानता है, हम दोनों रूखे कवि हैं। हम अपनी मस्ती का गान करते हैं। अभी इस क्षण जब मैं तुम्हें बधाई देने के लिए यह पोस्ट लिख रहा हूँ उस क्षण भी तुम क़िस्मत को धता बताते हुए कहीं किसी नदी या पहाड़ के अंचल में बैठे अपना गीत गुनगुना रहे होगे। तुम्हारी आवारगी और आशुफ़्ता मिज़ाजी को नज़र न लगे। दुआएँ देते हुए यही कहूँगा कि इन तमाम मुर्दों में तुम ज़िंदा हो, तुम्हें ज़िंदगी मिले।
दिवस मुबारक हो अभिन्न मित्र।।
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