ऐसा क्या है कि लोग इतने उतावले और बेकाबू होकर आज के दिन को ख़ुशी मना रहे है,....आज क्या दो सूरज उगे है. आज क्या रात नही होगी....आज क्या सब बैर मिट जावेगा.....मुझे तो नहीं लगता ऐसा होगा,........हम वो लोग है जो दूसरो की जीत का जस्न मना रह है ये नही देखते हम कंहा है हमने क्या किया है अपने और दूसरो के लिए.....अभी शाम ओढ़नी में सर छुपाये गली से जा रही थी... और सामने ही कुछ नीम के पेड़ो पर से जर्द सुर्ख पत्ते गिर रहे थे. अभी भी सडको का हाल वही है. आज भी कुछ मजदूर लोग रोज की तरह टिफिन लेकर घर को वापिस जाते दिखे. कुछ भी न्य नही था.. बस कुछ लोगो ने अपने रूआब पर रंग-रोगन करवाया है मिठाइयों ने आज नये रंग में स्वाद उतारा है रंगो से स्वाद में कडवाहट आ गई है ....और कुछ भी न था जिसे मैं कह सकू.. कि ख़ुशी मनाई जाये....
Pratap Pagal
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