Pratap Pagal
कई दिनों तक मेरे घर में आंगन भी रहा है.
इस वीराने में मौसम ए सावन भी रहा है.
कई आँखे मुझे देखते थकती नही थी कभी,
चेहरे की हिफाज़त में इक आँचल भी रहा है
जिसको लोग समझते है महफ़िल ए शान,
ये शख्स कभी ज़माने का पागल भी रहा है
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