कोई नही आता अब गली की आवाज़ बनकर,
कि सब चले गये है शहर छोडकर,
एक पागल था वो भी,
जाने क्या सुझा सबको एक साथ,
रवानगी के वक्त कहा भी कुछ नही....
सब जाते रहे एक एक करके,
पर मेरा क्या है
कौन रोक पाया है जाने वालो की सनक,
मैंने भी बांध रखी है गठरी अपनी,
तबियत भी आज कल कुछ
ठीक सी नही रहती,,,
चल बसेंगे अपने ठिकाने पर,
मैं भी नही कहूँगा उस वक्त देखना ....
कहते फिरोगे ज़माने भर से...
चला गया अकेला, पता भी नही चला,
Pratap Pagal
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