रात के मैले दामन में, चाँद सरकता बहता है,
बाली उम्र के पहलु में इक चेहरा रोता रहता है
सन्नाटे के तानो में, खून से लथपथ सांसो पर,
दीवारों के साये में कोई खंजर ले के चलता है,
अफ़साने रह जाते है, ख्वाईशो की करवट में,
चीथड़े पहने कोई शायर उम्दा गज़ले कहता है.
दुआओ से भर पोटली, हर माँ सफ़र में देती है,
जब सरहद पे जाने को बेटा घर से निकलता है.
Pratap Pagal
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