कल जब रात चांदनी में भीगकर मेरे आंगन में अपना चेहरा निहार रही थी तब किसी ने घर की ड्योढ़ी पे आकर अपनी सुरमयी आवाज में चिठ्ठी छोड़ी कि लो तुम्हारा पैगाम है मैं वंहा गया तो देखा कोई नही था मगर वो आवाज अब भी वंही खड़ी बोल रही थी मैंने उसे दिल में पिरोकर कोने में समेटकर रख दिया. जब पूरी तरह अपने आप से थक कर सो गया तो आवाज दिल से निकलकर सिरहाने आकर बैठ गई. और ऊँगली से मेरे बालो को लट की तरह घुमाने लगी. मुझे अच्छा लगा मैं करवट लेके चादर को भींच कर एक निस्वार्थ हंसी देके सो गया. ये हवाला कभी स्कूल के दिनों में हुआ था एक पागल के साथ जब वो आठंवी कक्षा में था. लंच के वक्त जब सारे बच्चे गुल्फी और झमक लेने चले जाते तो वो आवाज जिन्दा उस पागल की गोद में सर रखके महका करती. उस यादो की सुखी हुई नरमी अभी तक किताबो में मिलती है मुझे पता था कोई आवाज नही है ड्योढ़ी पर इसीलिए सुकून से सो जाता हूँ हमेशा इस आवाज के गेसुओ की तह लेकर......
स्कूल के दिनों की बहुत सी सुर्ख यादें ताउम्र साथ रहती है अधपक्का प्यार समेटे हुवे,..
Pratap Pagal
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