Pratap Pagal
चराग अपनी आस में भीग चूका हो, और अँधेरा चिपक गया हो दर ओ दीवार से....रात ठंढ में तर नये पेहरण में सिंण्गार करके ठुमकती हुए गलिया झाँकती दिखे.........
कि उस दौहरान किसी की पाजेब छनक सी महक उठे तो फिर नींद किसको.... आह उसके आने की खबर मुझे अक्सर बैचेन क्र देती है....
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