उसने नीन्द के सारे पत्ते काट कर,
बिछा दिया मेरी करवट में,
आवारा मुसाफिर ख्वाब जे,
आ जाता है आँख तक,
चुभन सी होती है उसके ज़िस्म में,
वो चाहता नही मुझे,
कहता है फिर-फिर के ये,
कि अब तो उसकी बात पे,
हो गया है यकीन सा,
झूठ भी बोलता है सच की तरह,
पागल है बिलकुल,
बहुत मुहब्बत करता है मुझसे,
न जाने क्या-क्या कहता रहता है,
आपसे मिले जो कभी,
सुन लेना उसकी बात मगर,
यकीं मत करना बस,
Pratap Pagal
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