Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

लगे हैं आपकी आंखो मे ये निशान से क्या

 

लगे हैं आपकी आंखो मे ये निशान से क्या
निकल के आए हो ख्वाबों के दरम्यां से क्या
तमाम शहर में पत्थर उठाए फिरते हो
ताल्लुकात थे फूलों भरे मकां से क्या

 

ना जाने कहाँ आग लग गयी दिल मे
निकल रहा अभी तक धुंआ जबान से क्या
यू क्यो अपने इरादो के पर कतरते हो
तुम वाकिफ हो शायद मेरी उडान से क्या

 

ये जिंदगी तो अब हवा के रूख पे चलती है
कोई करीब का रिश्ता है आयशा खान से क्या



दिल को तोड गयी पल मे शायद वो कोई पगली थी
बिछुड गयी मुझसे पल मे शायद वो कोई पगली थी
होठो पे हंसी आंखो मे नमी दिल मे तडपन थी मेरे अब
ये सब कुछ उसका तोहफ़ा है जो भी वो कोई पगली थी

 

 

 

प्रताप राज आर्य

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ