Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वक्त के क्रूर छल का भरोसा नही

 

 

वक्त के क्रूर छल का भरोसा नही
आज जीलो के कल का भरोसा नही
दे रहे हैं वो अगले जन्म की खबर
जिनको अगले ही पल का भरोसा नही।।

 

मुझसे कहती है तुम्हे ना छोडूंगी कभी
बहुत प्यार करती है मुझसे उदासी मेरी।।

 

कभी कभी तो बुलंदियो का इतना गुमान होता है
कभी कभी तो मेरे पर निकलने लगते हैं
मन जब भी चाहता है तुम्हे खत लिखूँ
तो घोसलो से कबूतर निकलने लगते हैं।।

 

लिखकर हमारा नाम जमीं पर मिटा दिया
तुम्हारा तो खेल हुआ हमे तो मिट्टी मे मिला दिया।।

 

पूछा जो हमने उनसे की भुलाया कैसे
चुटकियाँ बजाकर बोले ऐसे ऐसे ऐसे।।

 

तमाम उम्र तेरा इंतजार हमने किया
इस इंतजार मे किस किस से प्यार हमने किया
ये तिसनगी है कि तेरे करीब रहकर भी
संध्या याद तुझे बार बार हमने किया।।

 

सोचता था कि मै तुम गिरकर सँभल जाओगे
रोशनी बनके अंधेरो को निगल जाओगे
ना मौसम थे ना हालात ना तारीख ना दिन
किसे पता था कि तुम ऐसे बदल जाओगे।।

 

अब भी हसीन सपने आंखो मे पल रहे हैं
पलकें हैं बंद फिर भी आंसू निकल रहे हैं
नींदे कहाँ से आए बिस्तर पे करवटें ही
वहाँ तुम बदल रही हो यहां हम बदल रहे हैं।।

 

उनमे मे पानी की एक बूंद भी ना निकाल सके
तमाम उम्र जिन आंखो को हम झील लिखते रहे।।

 

मंजिल दूर है बहुत पर ठहरता कौन है
मौत कल आती है आज आ जाए डरता कौन है
तेरे भाईयो के मुकाबिल मै अकेला हूँ
फैसला मैदान में होगा कि मरता कौन है।।

 

 

प्रताप राज आर्य

 

 

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