Swargvibha
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अपराधिनी

 

प्रतिभा शुक्ला

 


बड़ी बेटी की शादी का समय था। नाउन उसकी मालिश करने आई थी। बैठते ही मैंने उनसे देर से आने का कारण पूछा तो उसका चेहरा वितृष्ण हो उठा, क्या बताऊँ बिटिया ज़माना बड़ा स्वार्थी हो गया है। औरत की क्या बिसात। गंदे लत्ते की तरह कैसे लोग फेंक कर चल देते हैं!
क्या हुआ दादी?
एक ठो छिनाल भेंटा गयी। बड़ी भीड़ लगी थी। कोई थूक कर चला जा रहा था तो कोई धिक्कारे जा रहा था। ऊ मुई न बोलती है न डोलती है।
कहाँ?
उहे घाटे के पास अस्पताल नहीं है! वही पर। सीढ़ी पर बैठी है। अस्पताल वाले तो अन्दर ही न घुसने दिए। बैठे-बैठे ही दुइ ठे लयिका पजा गयी। खून-मूत सब फैला है। देख-देख लोग घिन्नाए जा रहे हैं। एक लरिकवा मर गया है। दुसरका कैसा तो बतक रहा है। जाने बचेगा भी या नहीं।
अरे, उसके घर वाले कहाँ हैं? कब की बात है?
राते का है शायद। अउर कौन घर वाले? उसका मरद तो कब का छोड़ गया। एक घर में बर्तन माजती थी।
कितनी उम्र है दादी?
अरे बिटिया, बियाह हो गया तो समझो औरते है। नहीं तो अभी खेले खाए क उम्र है। बस 17-18 की समझ लो।
हे भगवन! ई बच्चे किसके हैं फिर?
कुछ लोग बता रहे थे कि जौने घरवा में बर्तन माज्ती है, उसी के सामने कौनो रिक्शा खडा करता था। राती में। ठीक से कब्बो देखी ही नहीं। देह भुखान रही तो जो भी मिला ग्रहण कर ली। अँधा का मांगे, दुइ ठे आँख। भूख मिटी त दूनौ अपनी राह हो लिए। ई अंधियारे क पाप लेइ के घूमत रह गयी रांड। पेट पिराने लगा तो अस्पताल चली गयी। बिटिया पास में पैसा नाही त ई दुनिया में आपनै नहीं चिन्हते, अस्पताल वाले क्या चिन्हते। भगवान क किरपा हुई, सीढ़ी पर ही हो गया।
ओह।
लेकिन बिटिया, रतियै में शायद एक लरिकवा को कौनो जनावर काट लिया। ऊ मरि गवा। दॊसर्कौ बचे न।
दादी, कोई सामाजिक संस्था या फिर आसपास के लोग मदद नहीं कर रहे हैं?
तुम भी खूब हो बहू। मरद जात की करतूत थी। मजा लिया चला गया। कौन पूछे। जो गुजरता है चारि गाली थूक देता है। हम ई कहती हैं बिटिया कि जब तुम्हारे पास क्षमता न थी तो काहे पैदा की। कौनो दाई के पास जाके गरभ गिरवा लेती। काहे दुइ ठे वंश बर्बाद की। अब इहै समझ लो कि बिटिया होती तो उसे भगवान् भी न पूछता। उसको मौत न आती। बेटा रहा, इही से मरि गवा।
मैंने पूछा, तुम्हे कितनी बेटियां हैं दादी?
छह ठो बिटिया।
मै मौन हो चाय बनाने चली गयी।

 

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