Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बेचारा भेड़िया

 

प्रतिभा शुक्ला

 

 

तुम गलतियाँ करते रहे
माफियाँ माँगते रहे
मै क्या करती
खामोश रहती
और तुम मान लेते
अपनी बेगुनाही।

 

तुम धीरे-धीरे
गलतियाँ बढाते गए
और क्षमा का अनुरोध भी
पर अब उनमे
पश्चाताप न था
एक शातिराना हंसी थी
मेरे जज्बातों का मखौल था।
मेरी दया का कोष
तभी से चुक गया।
मेरे लिए तुम बेचारे हो गए
और
भेडियों पर भी लोग
दया करने के लिए विवश हो जाते हैं।

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