प्रतिभा शुक्ला
मै एक किराए के मकान में रहती थी। वर्मा जी हमारे मकान मालिक हुआ करते थे। उनकी पत्नी स्नेह की मूरत थी। दिन भर दूसरों के कार्यों में व्यस्त रहने वाली ऊपर से कड़क अन्दर से नरम। मेरा सारा समय वही गुजरता था। उनकी दो बेटियां थीं। बड़ी बेटी सरला के साथ मेरी खूब पटती। वह मुझे हमेशा आने वाले खतरे से सावधान करती। यद्यपि मेरे और उसके उम्र के बीच दोगुने का फर्क था। फिर भी, एक दिन में मै गहरी नींद में सोयी थी। तभी किसी ने मुझे झिंझोड़ा। जैसे ही आँख खोली, देखा की सरला दीदी सामने थीं। वह बुरी तरह काँप रही थीं। मुह से बोल नहीं फुट रहे थे। मै उठ बैठी। उन्होंने मुझे छत की तरफ चलने को कहा। भयंकर ठण्ड में छत पर! समझ नहीं पा रही थी, फिर भी चल पड़ी। मै फर्श पर बैठ गयी तो वह मेरी गोद में निढाल पद गयी।पसीने में डूबी भय से कांपती हुयी वह बार-बार सीढियों की तरफ देखती।
मैंने उन्हें अपनी गोद में चिपका लिया और पूछा, क्या बात है सरला दीदी?
वह हकलाते हुए बोली, कावेरी जीजा जी------------. मुझे ऐसा लगा की रात के सन्नाटे में मेरे विस्तार पर कोई था।
मै बोली, हो सकता है कोई सपना देखा हो दीदी।
नहीं कावेरी, यही जानने के लिए मैंने आँख खोली तो कमरे की बिजली बुझी हुई थी। जबकि मैंने बिजली जला राखी थी। फिर वह बोलती गयी, जब मैंने उठकर चलने की कोशिश की तो किसी ने मेरा हाथ खींचा और मै झटक कर भाग आई हूँ। बिना मुड़कर देखे।
वह कांपती जा रही थी कि अब क्या होगा! अगर वह ऊपर भी आ गए तो?
मैंने उसे कसकर भींच लिया और बोली, कोई मेरे रहते आपको छु पाए, ऐसा मै होने न दूँगी।
वह मेरी गोंड में खरगोश के बच्चे की तरह चिपकी थी और मै उसकी सुरक्षा कवच बनकर रात भर जागती रही। इतने बड़े घर में जहाँ उसकी माँ को जागना चाहिए था, मै जाग रही थी। सरला दीदी ने बताया की मुझे दीदी पर भी शक है। क्योंकि जब मैंने उन्हें दूसरे कमरे में चलने को कहा तो बोलीं कि नहीं, यही पर सोते हैं।
दीदी और मै बचपन से एक सहेली की तरह रही हूँ। हैं तो वह बड़ी माँ की बेटी, पर माँ ने कभी फर्क नहीं किया।
धन्यवाद कावेरी। तुमने मुझे बचा लिया। यह कहते हुए सरला दीदी ने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिया।
मैने पूछा, दीदी तुम्हे माँ को जगाना चाहिए था।
वह बोली, बड़ा बबाल मच जायेगा। जो मुझे सही रास्ते की पहचान कराती थी, आज वह निढाल हो मेरी गोद में सुरक्षा महसूस कर रही थी। धीरे-धीरे उनकी आँखें बंद हो गयी और मै रात भर बैठी रही। सुबह के इंतज़ार में नंगे फर्श पर।
सुबह हुई तो मैंने कहा, तुम इस बात को दीदी को बता दो। बड़ी हिम्मत करके वह नीचे कमरे में आई। उसने देखा की जीजा जी सामान बाँध रहे हैं। वे आँख मिलाने से कतरा रहे हैं। यह बात जब उसने दीदी को बतायी तो वह कुछ देर मौन रही। फिर बोली, बिना लाग-डाट के कोई ऐसे ही किसी का हाथ नहीं पकड़ लेगा। पहले से सधी-बढ़ी रही होगी।
उसकी आत्मा तड़प उठी। क्रोध में उसने यह बात अपनी माँ को बतायी। वाक्य पूरा होने से पहले ही माँ ने उसके मुह पर माँ ने हाथ रख दिया चुप रह लड़की। घर में रिश्तेदार हैं। भूल जा जो हो गया। छोटी सी बात के लिए उम्र भर का रिश्ता तोड़ लूं। बेटी ब्याही है!!!!!
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