Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इंतज़ार नहीं होता रूह को मेरी

 

 

इंतज़ार नहीं होता रूह को मेरी
तलब कुछ ऐसी जगाते क्यों हो
प्यासे समंदर को एक बूँद देकर
उसका वज़ूद जताते क्यों हो
अगर तमन्ना है तुम्हे इश्क़ करने की
तो आकर मुझमें समाते क्यों नहीं हो
मैंने कुछ ख्वाब बुने है एक अरसे से
आओ आकर जगाते क्यों नहीं हो
इंतज़ार नहीं होता रूह को मेरी
तलब कुछ ऐसी जगाते क्यों हो
किनारो पर आकर लेहरो में सिमटना
मुकलम दिल में तूफान क्यों उठाते हो
मेने अंधेरो में चाँद उगाना सीखा है
पर तुम मिलने आते क्यों नहीं हो
राज़ मोहबत के इशारो में खुल जाते
कभी नजरे मिलाते क्यों नहीं हो
इंतज़ार नहीं होता रूह को मेरी
तलब कुछ ऐसी जगाते क्यों हो

 

 


प्रवीण कुमार

 

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