Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जीवन शून्य भरो कि, जीवन थाती है।

 

जीवन शून्य भरो कि, जीवन थाती है।
जीवन धन भरों कि, जीवन खाली है।
मात पिता गुरू से गुनों कि, शून्यता बाकी है।
मर्यादित जीवन जियों कि, जीवन साथी है।
सुख, शान्ति, संयम गुनों कि, जीवन थाती है।
जीवन शून्य भरो कि, जीवन थाती है।
कर्मठता को चुनों कि, चुनना बाकी है।
दृढ़ निश्चय को चुनो कि, दृढ़ता बाकी है।
निर्भयता को चुनों कि, निर्भयता बाकी है।
जन-जन का संशय मिटे कि, समर्पण बाकी है।
जीवन शून्य भरो कि, जीवन थाती है।
विद्या रत्न बनो कि, अभिलाषा बाकी है।
विद्यार्थी बनों कि, शिक्षा बाकी है।
वाक विवेकी बनों कि, शिक्षा वाणी है।
वाणी संयम चुनों कि, गुनना बाकी है।
जीवन शून्य भरो कि, जीवन थाती है।
जीवन पथ पर बढ़ों कि, जन-जन साथी है।
सब साथ चले, सब साथ बढें।
नवयुग का मार्ग प्रशस्त करें,
कि, जन-जन साथी है।
जन जीवन योग्य बनो कि, जन-जन साथी है।
जीवन रस भरो कि, भरोसा बाकी है।
उन्नत जीवन जीयों कि, जनता साथी है।
जीवन शन्ूय भरो कि, जीवन थाती है।
सड़क, पानी और बिजली से बात नही बनने वाली,
जीवन समृद्व करो कि, जन-जन साथी है।
जीवन परिधि विस्तृत करों कि, जन-जन बाकी है।
जांत पांत से कुंठित होकर, जन आक्रोश सुनों कि, जनता साथी है।
जन कोलाहल सुनों कि, जन-जन साथी है।
जीवन शून्य भरों कि, जन-जन बाकी है।
जीवन शून्य भरो कि, जीवन थाती है।

 

 

 

प्रवीण कुमार

 

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