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खफा हो तुम तो मनाऊ कैसे

 

खफा हो तुम तो मनाऊ कैसे
खुद से खुद को समझाऊ कैसे
तन्हा है हम एक ज़माने से
वो एहसास तुमको जताऊ कैसे
दिल तो चाहता है के मिटा दू नफरते
जुबा पर बात आती है
तो थोड़ा और रुक जाते है
खफा हो तुम तो मनाऊ कैसे

 



क्या बात है
कौन है वो
कुछ आहट सी तो हुए है
दिल तो ठहरा है
एक ज़माने से
आगोस में
उसके
फिर ये बरसात
कहाँ हुए है
क्या बात है
कौन है वो

 

 

 

प्रवीण कुमार

 

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