Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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में अगर मसरूफ़ हो भी गया

 

 

में अगर मसरूफ़ हो भी गया
तो तुम बतला भी सकते थे
अगर चाहते दिल से
तो दूरिया मिटा भी सकते थे
मेरे तरनुम में थी बस ख़ामोशी मेरी
अगर चाहते तो तराना गा भी सकते थे
और पढ़ लेते अगर गुमनाम होंठो की जुबां
तो हालात समझ भी सकते थे
में अगर मसरूफ़ हो भी गया
तो तुम बतला भी सकते थे

 

नयी तकल्लुफ दे जाता है
उसका हर बार रुट जाना
दस्तक देना और फिर चले जाना
मुक्तलिफ़ किस्म के किस्से हे यहां
प्यारए तकरार और फिर मनाना
नयी तकल्लुफ दे जाता है
उसका हर बार रुट जाना

 

 

 

 

प्रवीण कुमार

 

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