Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तीन बरस बीत गये

 

 

तीन बरस बीत गये
तीन बरस बीत गये
उस दौर के गीत गये
तीन बरस बीत गये
यादो ने करवट बदली
गुमनामी में डूब गये
तीन बरस बीत गये
चाह भी अधूरी रही
ख्वाब जैसे लूट गये
तीन बरस बीत गये
रातें सब धुआं हुई
शीत सारे ठिठुर गए
तीन बरस बीत गये
दुःख भी साथी रहा
सुख सारे मीत हुए
तीन बरस बीत गये
होंठ ये नीलाम हुए
नजरे ये प्यासी रही
मिन्नतें करते रहे
तीन बरस बीत गये
सावन की बारिश गयी
बादल बिन गरजे रहे
प्रीत सारे टूट गये
तीन बरस बीत गये
नदियों का पानी गया
आँखों का काजल गया
पेड़ सारे सुख गये
तीन बरस बीत गये
तीन बरस बीत गये

 


प्रवीण कुमार

 

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