तुम समझते तो बात कुछ और होती
ना ठहरते तो फ़िज़ा कुछ और होती
और में ता उम्र शमा बना रहा,
अगर तुम भी जलते, तो रात कुछ और होती
तुम समझते तो बात कुछ और होती...
तुम ही कहते थे, तुम याद बहुत आते हो,
कभी सुबह, कभी शाम, और रातो को तड़पाते हो,
ना जाने… ना जाने कैसी हसरते,
तुम अता कर गए
में खुद को याद रखता हूँ,
मगर तुम भूल जाते हो॥
तुम ही कहते थे, तुम याद बहुत आते हो….
समझ के यूँ ही में उम्र भर उलझता रहा
तुम हो यही सोचकर भटकता रहा
ना जाने कितने..... ना जाने कितने...
अफ़साने गाली हो गए
तसव्वुर (कल्पना) में अपने यूँ ही सुलझता रहा
समझ के यूँ ही में उम्र भर उलझता रहा...
उलहज के ऐसे मोहब्बत का फलसफा रह जाये
की तुम छू लो......
तुम छू लो ऐसे की इश्क़ फना हो जाये
खामोसिया, ख्वाहिशें, दीदार बस...
बस एक हसरत रह जाये
और तुम्हें जीया है....
तुम्हें जीया है हमने हरेक लम्हे में
अब तुम सांसे भी रोक लो तो एहसास हो जाये
उलहज के ऐसे मोहबत का फलसफा रह जाये......
प्रवीण कुमार
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