समाजवाद है जहाँ घोटाले पलते बढ़ते है,
समाजवाद है जहाँ सामाजिक सदभाव जलते रहते है,
समाजवाद है जहाँ जाति का जहर पिलाया जाता है,
समाजवाद है जहाँ अजारकता का माहौल बनाया है,
समाजवाद है जहाँ तुष्टिकरण का गोरखधंदा है,
समाजवाद है जहाँ सत्य हारकर भी जिन्दा है,
समाजवाद है जहाँ दंगे भड़काए जाते है,
समाजवाद है जहाँ मोहोत्सवः रंगीन मनाये जाते है,
समाजवाद है जहाँ राम पर संकट आया है,
समाजवाद है जहाँ तम का घनघोर साया है,
समाजवाद है जहाँ खूनी फ़ाग मनाये जाते है,
समाजवाद है जहाँ जन जन के हत्यारे है,
समाजवाद है जहाँ चंद्रशेखर को अपमान मिला,
समाजवाद है जहाँ बलिदानी को तिरस्कार मिला,
समाजवाद है जहाँ गुंडों को सम्मान मिला ,
समाजवाद है जहाँ वामपंथियो को स्वाभिमान मिला,
समाजवाद है जहाँ किसान आज कमजोर है,
समाजवाद है जहाँ केवल गुंडों का शोर है ,
समाजवाद है जहाँ वर्चस्व चरम पर बैठा है,
समाजवाद है जहाँ गरीबो के घर ग़म का मेला है ,
समाजवाद है जहाँ कानून आज शार्मिंदा है,
समाजवाद है वहां जहाँ परिवारवाद ही जिन्दा है,
ऐसे समाजवाद की कल्पना लोहिया ज़ी की निंदा है,
और सामाजिक भेदभाव, समरसता बस नारो में जिन्दा है ॥
प्रवीण कुमार
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