Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अब गाँवन में प्रे्रेम कहाँ है

 

 

अब गाँवन में प्रेम कहाँ है
हर हिअरा मंे लहकत भउरा
अब ना लहके कतहूँ कउड़ा
आग ना केहू मिल के तापे
एक कोना में पड़े बुढ़ापे
बेटवो भउँके बहुरियो भउँके
बाबूजी पर सब केहूँ फँउके
बुढ़उ माँगस चाय जे तनिका
टर्र-टर्र करऽ ना बेसी जनिका
आदर, इज्जत, श्रद्धा, स्नेह का
उ सुंदर सा टेम कहाँ है
अब गाँवन मंे प्रेम कहाँ है
ट्रैक्टर काट देलस बैलन के
अब ना पूजा गाय के तन के
खतम हुआ खलिहान का कलचर
मुँह नोचवा आ गया थरेसर
बिसरल मीठ काका के बोली
उ खलिहान के हँसी ठिठोली
अब ना रास कहीं तउलाये
अब ना लरीका अँजुरी पाये
अब कइसे उ मेला जाए
गुड़ही जिलेबी कइसे खाये
कलह समाया घर आँगन में
अब उ कुशल छेम कहाँ है
अब गाँवन में प्रेम कहाँ है
फगुआ का ना ताल ठोकाये
अब ना चईता कहीं गवाये
अब उ रंग गुलाल कहाँ है
हृदय बसल मलाल जहाँ है
अब ना केहू हाथ मिलावे
अब ना हिया से गरे लगावे
अब तो सर शिकाइत खाली
इक दूसरा से क्लेम इहाँ है
अब गाँवन में प्रेम कहाँ हैं

 

 

 

प्रेम सागर सिंह

 

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