बाबा ने बाबू से कहा था
बाबू हमसे कहते हैं
सात समंदर पार कहीं
कुछ मेरे अपने रहते हैं
गिद्धों ने पंजों में पकड़कर
उनको उड़ा लिया था
नीले सागर में दीप पर
जाकर गिरा दिया था
पश्चिम के वासी होकर भी
पुरवइया सा बहते हैं
सात समंदर पार कहीं
कुछ मेरे अपने रहते हैं
अपनापन सा पहनावे में
अपनी जैसी भोजपुरी
एक माँ की मिट्टी से हम
लेकिन फिर भी कितनी दूरी
बिछड़न का जब टीस उठे तो
वो भी हम भी सहते हैं
सात समंदर पार कहीं
कुछ मेरे अपने रहते हैं
प्रेम सागर सिंह
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