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Dr. Srimati Tara Singh
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सरहद

 

 

मेरे जिस्म का आधा हिस्सा
सरहद के उस पार पड़ा है
तुम कहते हो भूल भी जाओ
मैं कहता हूँ कैसे?
मेरे बचपन का वो क़िस्सा
सरहद के उस पार पड़ा है
तुम कहते हो भूल भी जाओ
मैं कहता हूँ कैसे?
माई जब-जब रोटी सेंकी
दो टुकड़ों में कर के फेंकी
आधी रोटी मैंने खाई
आधी मेरे मीत ने खाई
मेरा वो इक दंत बतीसा
सरहद के उस पार पड़ा है
तुम कहते हो भूल भी जाओ
मैं कहता हूँ कैसे?
हम क्या जाने क्या है सियासत
किसने सीमा रेखा खींची
उनके आम का पेड़ इधर है
मेरी भी इक उधर है लीची
उनका वो क़ुरान अलीफ़ा
मेरे घर में जतन धरा है
मेरा भी हनुमान चालीसा
सरहद के उस पार पड़ा है
तुम कहते हो भूल भी जाओ
मैं कहता हूँ कैसे?
........

 

 

 

प्रेम सागर सिंह

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