Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

कुछ यादें आज भी रखी हैं बडे जतन से मन में मैनें...........

 

कुछ यादें आज भी रखी हैं बडे जतन से मन में मैनें...........
किसी खजाने के अनमोल अगणित मणि मुक्तक सी..........
कुछ घने कुहासे जैसी धूमिल सी हैं स्मृतियों में......
कुछ दूर दूर तक फैली हैं पतझण के टूटे पत्तों सी.....
कुछ किरचें किरचें बिखरीं हैं शायद कुछ टूटे सपनों सी....
कुछ भटक रहीं हैं जीवन मरु में एक अन्तहीन मृगतृष्णा सी.....
कुछ चंचल चपल कुछ इतराती कुछ आंखो को बरसा जाती....
कुछ जीवन में सुगंध लिए ताजा फूलों की खुशबू सी...
कुछ मन को आके भिगो जाती ताजा ओस की बूंदो सी...
मन में कितनी ही आस लिए पूंजी हों जैसे जीवन की.........

 

 

कुछ यादें आज भी रखी हैं बडे जतन से मन में मैनें...........
किसी खजाने के अनमोल अगणित मणि मुक्तक सी..............प्रियंका

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ