Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चुप्पी

 

बहुत हुआ पिता जी अब आप माँ पर हाथ नहीं उठायेंगे वरना मैं भूल जाऊँगी की आप मेरे पिता है। एक ज़ोर का थक्का देते हुए वर्मा जी ने दिव्या को कहा- अरी जा देखे तेरे जैसे, न जाने किस कि औलाद है, जा मुँह काला कर अपना यहाँ से......
दिव्या ने कानों पर हाथ लगा ज़ोर से चिल्लाई..... बस चुप। पैर पटकते हुए खीज़ कर दिव्या अपने कमरे की तरफ दौड़ गयी
वर्मा जी का ये बोलना की ''वो न जाने किसकी औलाद है '' सुन कर दिव्या बहुत दुःखी हो गयी। बार बार उसको वही शब्द सुनाई देने लगे, आँखों से झर झर आँसूं बहे जाते और दिव्या हाथों को पीसती जाती।
दिव्या कि माँ रोती हुई उसके कमरे कि तरफ गयी और दरवाज़ा पीटने लगी -दिव्या बेटी दिव्या....... ये आदमी तो सनकी है तू तो समझती है न…. दरवाज़ा खोल बेटा…..
पर बहुत समय तक दिव्या कि कोई हरक़त न सुनाई पड़ी तब माँ ने दरवाज़ा पीटा और कोई हरकत न सुनाई देने पर घबरा कर पड़ोसी को बुला दरवाज़ा तोड़ दिया ……..और सामने जो था उसे देख माँ बेहोश हो गयी सामने दिव्या थी। उसने पँखे से लटक कर खुदखुशी कर ली थी…….

 

 

प्रियंका सिंह

 

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