मनुष्य सामाजिक प्राणि है। समाज एक एेसी संस्था है जो संबंधों के आधार पर चलती है। मैकलिवर ने समाज के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए लिखा है- “समाज विभिन्न समूहों में उपयोगिता और व्यवस्था, अधिकार एवं परस्पर सहकार्य से युक्त एक व्यवस्था है, जिसमें मानव व्यवहार एवं स्वातंत्र की विभाजन रहता है। एेसी निरंतर परिवर्तनशील सम्मिश्र व्यवस्था को हम समाज कहते हैं। यह सामाजिक संबंधों का एक ताना-बाना है, जो निरंतर बदलता रहता है।”1 साहित्यकार भी समाज का एक अंग है। समाज में घटनेवाली घटनाओं से वह प्रभावित होता है। उन्हीं घटनाओं, परिस्थितियों को साहित्य के माद्यम से व्यक्त करता है। समाज को केंद्र में रखकर सामाजिक स्थितिगतियों को साहित्य के माद्यम से प्रकट करनेवाली मुस्लीम महिला लेखिकाओं में नासिरा शर्मा का नाम आदर के साथ लिया जाता है। समाज में प्रचलित स्त्री शोषण, नारी अस्मिता की पहचान आदि विषयों को आधार बनाकर साहित्य की रचना कर रही हैं। प्रस्तुत आलेख में इनकी दों प्रसिद्ध कहानियाँ- ‘दहलीज’ और ‘नयी हुकूमत’ में किस प्रकार भारतीय समाज में स्त्री शोषण का शिकार बन रही है इसका चित्रण प्रस्तुत किया गया है।
‘दहलीज’ कहानी में दिल्ली के एक मद्यवर्गीय परिवार का चित्रण किया गया है। आरिफ मियाँ के परिवार में आरिफ मियाँ के मृत्यु के बाद घर का सारा बोझ उनके बेटे सामिन पर पड़ता है। सामिन के घर में सामिन की माँ, सामिन की पत्नि इजहरा और इनके बच्चे सकीना, शाहीन, हुमैरा और जावेद रहते थे। घर के प्रत्येक निर्णय सामिन की माँ पर ही निर्भर करते थे। उनके बातों पर विरोध करने की शक्ति किसी में भी नहीं थी। किस प्रकार दादी और जावेद से लड़कियों पर शोषण होता है इसी को दिखाने का प्रयास किया है।
नारी पर शोषण उसके परिवार के सदस्यों से ही प्रारंभ होती है। लड़का-लड़की में आपसी भेद-भाव, ऊँच-नीच की भावना का जन्मस्थान घर ही है। आज भी हमारे समाज में लड़के को अधिक और लड़की को कम समझने की प्रवृत्ति है। दादी हमेशा अपने एकलौता पोता जावेद का साथ देती है। उसकी सारी खुशियाँ, आवश्यकताओं को पूर्ण करती है। दादी के प्रभाव के कारण जावेद अपने बहनों पर अधिकार चलाता है। इंटरव्यूव में जाने के लिए अपने कमीज को इस्त्री करने के लिए सकीना को आदेश देता है। जब सकीना इनकार करती है तो जावेद उसके साथ झगड़ा करता है। तब दादी सकीना को डांटते हुए उसकी माँ को कहती है कि- “भाई से जबान लड़ाती हो? माफी माँगो...और दुलहन तुमने भी बेटियों को सर चढ़ा रखा है। याद रखो, नस्ल बेटों से चलती है, यह लड़कियाँ तो मुँडेर पर बैठी गौरैया हैं, अपने बसेरे को उड़ जाएँगी, पलटकर नहीं आएँगी। बुरे वक्त का साथ लड़का होता है चाहे काना ही क्यों न हो।”2
शिक्षा के कारण ही मानव मानव बना है। और उसकी प्रगति हो रही है। सरकार के कानून के अनुसार स्त्री-पुरूष को समान शिक्षण देना है। लेकिन हमारे समाज में स्त्री शिक्षा को उतना महत्वपूर्ण नहीं माना जा रहा है। लड़की सिर्फ़ घर में काम करने, परिवार के साथ बाल-बच्चों को संभालने के लिए ही योग्य इस प्रकार की मनोदशा व्याप्त है। घर के आर्थिक परिस्थिति के कारण या अन्य कारणों को आधार बनाकर स्त्री को शिक्षा से वंचित किया जा रहा है। लेखिका ने अपनी कहानी में सकीना, शाहीन और हुमैरा के द्वारा भारतीय समाज में किस प्रकार नारी को शिक्षा से दूर रखने का प्रयास किया जाता है इसका सुंदर चित्रण किया है। घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए इंटर पास की हुई सकीना को आगे पढने का अवसर नहीं मिलता है। लेकिन सच्चाई यह थी कि सकीना का विवाह करना था। अगर उसकी शादी हो गयी तो बाकी दोनों की शादी भी जल्द-से-जल्द करने की योजना थी। और ये भी माना जाता है कि अगर लड़की ज्यादा पढ़ाई करेगी तो घरवालों पर अधिकार चला सकती है और अपने योग्यता के अनुरूप वर चुनेगी। पुरूष के समान बाहर जाकर काम करनेवाली स्त्री पर समाज कुदृष्टि से देखता है, उसके चरित्र पर कलंक लगाने का प्रयास करता है। दफ्तरों में स्त्री की कमजोरियों को जानकर उसके साथ खिलवाड़ किया जाता है। कहानी में जावेद अपने सहोद्योगी स्त्रीयों के साथ इसी प्रकार का व्यवहार करता है। अपने बहनों के साथ कोई इस प्रकार का व्यवहार न करे इसीलिए वह बहनों को बाहर जाकर काम करने से रोकना चाहता है।
विवाह पवित्र बंधन है। विवाह के समय में स्त्री-पुरूष के परस्पर ईच्छा, आशा और विचारों को मानना आवश्यक है। लेकिन भारतीय समाज में विवाह जैसे महत्वपूर्ण विषय में स्त्री की स्वतंत्रता पर रोक लगायी जाती है। घरवालों के अनुसार उसको विवाह करना है। ‘दहलीज’ कहानी में सकीना के विवाह के संदर्भ में उसकी भावनाओं को व्यक्त करने का अवसर नहीं दिया जाता है। वह एेसे घर में बहु बनकर जाती है, जहाँ “सलीके की इल्म की कदर नहीं है। अखबार, मैगजीन का आना उनके यहाँ गुनाह है।”3 एेसी स्थिति में उसको घुटन का आभास होती है। अपनी बहन की स्थिति से अवगत होकर शाहीन अपने शादी के दिन आत्महत्या कर लेती है। इस प्रकार की घटनाएँ हमारे समाज में सामान्य हो गये हैं। किसी न किसी कारण से कुछ लड़कियाँ विवाहपूर्व आत्महत्या कर लेते हैं और कुछ विवाह के उपरांत।
एेसी अवस्था में भी स्त्री आज प्रत्येक क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही है। पुरूषों के समान काम कर रही है। कहानी की हुमैरा घर के सारे बंधनों को तोड़कर अपने अस्तित्व स्थापित करती है। घर की दहलीज को पार करके वहाँ तक जाना चाहती है, जहाँ आसमान और जमीन मिलते हैं। हुमैरा के माद्यम से लेखिका ने नारी मुक्ति का संदेश दिया है।
‘नयी हुकूमत’ कहानी में ‘हाजरा’ नामक औरत की दद्रभरी कहानी को प्रस्तुत किया गया है। अपने पति अलताफ के साथ सत्ताइस साल का वैवाहिक जीवन व्यतीत करती है। अलताफ शीशे काटने का काम करता था। सत्ताइस साल के वैवाहिक जीवन के बाद वह दूसरी शादी करता है। इस घटना का विरोध करते हुए हाजरा अपने पति को स्वयं तलाक देती है और अपने हाथों से बनाए घर को छोड़कर माँ के घर आती है। जीवन के बाकी दिनों को वह सिलाई का काम करते हुए माँ के घर में बिताती है। अंत में हाजरा का बेटा आकर उसे अपने साथ ले जाता है।
भारतीय समाज में विवाह को विशेष महत्व प्राप्त है। विवाह सिर्फ़ दो शरीरों का ही मिलन नहीं, बल्कि दो आत्माओं का मधुर सरगम है। हमारे समाज में विवाह के संदर्भ में नारी को कोई स्वतंत्रता नहीं है। प्रस्तुत कहानी में हाजरा का विवाह उसके इच्छा के विरूद्ध होता है। फिर भी वह अपने पति के साथ वैवाहिक जीवन के सुख-दु:ख में भागी होती है। इनके तीन बच्चे होते हैं। दोनों लड़कियों की शादी करके देते हैं और लड़का काम करने दुबई गया हैं। एेसी स्थिति में अलताफ अपनी खुशी के लिए दूसरी शादी करता है। यह विषय हाजरा को पता नहीं चलता। जब अपनी दूसरी पत्नी को घर लेकर आता है तो हाजरा उसके साथ वाद-विवाद करके क्रोद में उसको तलाक देकर माँ के घर आती है। यहाँ गलती अलताफ की थी। मगर हाजरा को सजा भुगतना पड़ता है। भारतीय समाज में पुरूषों से ज्यादा स्त्रियों पर ही पारिवारिक शोषण होता है। प्रत्येक संदर्भ में नारी को ही शिकार बनना पड़ता है। पति के द्वारा अन्याय होने के बाद भी नारी को अपने परिवारवालों से सहायता नहीं मिलती है।
स्त्री स्वाभिमानी होती है। उसके साथ हुए अन्याय का वह विरोध करती है। अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जीवन से, समाज से संघर्ष करती है। प्रस्तुत कहानी में हाजरा खुद के प्रति हुए अन्याय का विरोध करते हुए पति को और मेहनत से बनाए हुए घर को छोड़कर आती है और माँ के घर में सिलाई का काम करके रोजी-रोटी कमाती है। इस संदर्भ में हाजरा की माँ कहती है कि- “खुला मैदान छोड़ आयी? तुम लड़कियाँ भी अजीब हो। जहाँ हक बनता है वह लेती नहीं हो, जहाँ लड़ना होता है वहाँ खामोश रह जाती हो और जहाँ कुछ भी नहीं करना होता है वहाँ तुफान उठा देती हो...? कभी-कभी तो लगता है कि जैसे तुमने ही मर्दों को बिगाड़ कर रख दिया है अपनी हेकड़ी में...।”4 लेखिका का मानना है कि कुछ हद तक पुरूष के इस प्रकार के व्यवहार के लिए स्त्री ही कारणीभूत है। स्त्री पुरूष द्वारा होनेवाले अन्यायों को चुपचाप झेलती है।
भारतीय धर्म, शास्त्र, पुराणों के अनुसार स्त्री अंत तक परावलंबी है। बचपन में उसे माँ-बाप का सहारा, युवावस्ता मे पति का और वृद्धावस्ता में बच्चों का सहारा चाहिए। नारी पर हर पुरूष हुकूमत चलाता है। पिता के रूप में, पति के रूप में और बेटे के रूप में। प्रस्तुत कहानी में हाजरा विवाह के उपरांत पति के आश्रय में जीती है और अंत में उसके बेटे के आश्रय में। लेखिका कहानी के अंत में कहती हैं कि- “आखिर उसका दूसरा वारिस आया था उसे लेने, जिसको उसने खुद पैदा किया था। इस नयी हुकूमत की बागडोर अब वह छोड़ना नहीं चाहती थी।”5
निष्कर्ष :
कहानीकार नासिरा शर्मा ने अपने कहनी-साहित्य के द्वारा भारतीय समाज में स्त्री पर हो रहे अन्याय, अत्याचारों का पर्दाफाश किया है। उन्होंने सिर्फ नारी शोषण को ही नहीं दिखाया, बल्कि नारी मुक्ति का संदेश भी दिया है। अपनी प्रखर वाणी, सदृढ़ भाषा के बल पर भारतीय समाज का चित्रण करने में सफल हुए हैं।
संदर्भ ग्रंथ :
1. डा. जोगेंद्र सिंह वर्मा ट्ट फणीश्वरनाथ रेणु का कथा साहित्य समाज-शास्त्रीय विश्लेषण- पृ सं ट्ट 17
2. नासिरा शर्मा ट्ट दहलीज ट्ट पृ सं ट्ट 67
3. नासिरा शर्मा ट्ट दहलीज ट्ट पृ सं ट्ट 67
4. नासिरा शर्मा ट्ट नयी हुकूमत ट्ट पृ सं ट्ट 163
5. नासिरा शर्मा ट्ट नयी हुकूमत ट्ट पृ सं ट्ट 166
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