प्रो.संगमेश ब.नानन्नवर
‘ओह अमेरिका’ दयाप्रकाश सिन्हा का एक एेसा नाटक है, जिसमें आधुनिक युवा पीढि़ के बढ़ते पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता का आंधानुकरण और उसके बुरे परिणामों को दर्शाया गया है। आधुनिक समाज के नई पीढि़ सामाजिक तथा पारंपरिक सभ्यता को भूलकर अपने ही दिशा में चले जा रहे हैं, जिसका कोई उचित लक्ष्य नहीं। आज की युवा पीढि़ तथा पुरानी पीढि़ के बीच के संघर्ष को पात्रों द्वारा नाटककार ने खूब प्रस्तुत किया है। समाज की सही दिशा के लिए पूरानी व नयी पीढि़ दोनों में रिश्ता मजबूत होना आवश्यक है। इसके लिए पुरानी पीढि़ को अपनी हठधर्मिता छोड़ने एवं नई पीढि़ को क्रांति के नाम हो रहे उलजलूल कार्यों की उपेक्षा करनी होगी। तभी समाज सही दिशा में विकास प्राप्त कर सकेगा। यह नाटक आज की युवा पीढि़ के पाश्चात्य आधुनिकरण एवं पीढि़वाद संघर्ष पर आधारित सशक्त व्यंग्य नाटक है।
सिन्हा जी ने युग के अंतरसंघर्ष को व्यक्त करने के लिए कथावस्तु को तीन भागों में विभाजित किया है। पूर्वरंग में फारस की भाषा बोलनेवाले मुन्ना का प्रसंग है, जो फारसी भाषा से अनभिज्ञ अपनी परिवार में फारसी भाषा में पानी की मांग ‘आब-आब’ से करता है। परंतु उसके पिताजी चौधरी और उसकी अम्मा उसकी भाषा को समझ नहीं पाते। मुन्ना कहता है- “तपिश! अतिश! आब”1 जहांगीर के समय चौधरी का लड़का फारसी सीखने परसीया जाता है और लौटने पर घर में पानी के स्थान पर आब, गर्मी के स्थान पर तपिश, अग्नी के स्थान पर अतिश का एेसे ढंग से प्रयोग करता है कि परिवर में किसी व्यक्ति को उसकी भाषा समझ में नहीं आती। मुन्ना के माता-पिता घबराकर कुछ और ही समझने लगते हैं। पानी देते ही नहीं। वह ‘आब-आब’ कहते बिना पानी के मर जाता है। इसी दृश्य में विवेक नामक पात्र से दर्शकों का परिचय होता है। विवेक लोगों को समझाता है- “फारस गए मुगल हो आए, बोले मुगली बानी। ‘आब-आब’ कर मर गये मुन्ना, खटिया तले था पानी।”2 नाटक के पूर्वरंग में मुन्ना द्वारा फारस की सभ्यता का अंधानुकरण करनेवली पीढ़ी का संघर्ष उभरता है, जिसका परिणाम मुन्ना की मृत्यु में परिणत होता है। यदि व्यक्ति अपने देश व परिस्थिति के अनुकूल किसी विदेशी सभ्यता से उपयोगी सिद्धांत ग्रहण करे तो उसके साथ उसका एवं समाज का भी कल्याण होगा। लेकिन अगर विदेशी भाषा से अनजान अपने परिवार में संकट में उसी भाषा का प्रयोग किया जाएगा तो परिणाम वही होगा जो मुन्ना के मृत्यु में हुई।
प्रथम अंक में भारत की युवा पीढ़ी के अंग्रेजी संस्कृति एवं सभ्यता के अंधानुकरण को दर्शाया गया है। पंडित जी के पुत्र जिनका नाम श्यामलाल है, वह दो साल बाद लंदन से आनेवाला होता है, जिसकी खबर से सारा मोहल्ला परिचित है। बेंड-बाजे का प्रबंध करके सारे लोग श्यामलाल का जुलूस निकालनेवाले होते हैं। पंडित जी समझते हैं कि विलायत में उनका धर्म भ्रष्ट हो चुका है। उसे गोमूत्र, गोबर और गंगाजल से पवित्र करना चाहते हैं। परंतु श्यामलाल एक दिन पहले ही आ जाता है। लंदन से वापस आए श्याम अपनी पत्नी को आलिंगन करना चाहता है। परंतु वह छिटककर दूर चली जाती है। क्योंकि वह भारतीय नारी है। लज्जा और घबराहट उसकी अस्तित्व का प्रतीक है। वह अपने संस्कारों की सम्मान करती है। तभी श्याम को इस बात पर विवेक आकर उसे भारतीय नारी और विदेशी नारी के बीच के अंतर को अपने वार्तालाप से समझाता है। तब श्याम अपनी पत्नी की घुंघट उठाता है तो उसे अपनी पत्नी अत्यंत सुंदर लगती है। श्याम अपनी पत्नी को विदेश से लाए हुए पोषाक पहनने को कहता है। पत्नी के लाख मना करने पर भी नहीं मानता। आखिर वह मान जाती है। पंडित अपने पुत्र के हाव-भाव और अपने को पाप कहने से दु:खी हैं। वह श्याम के विदेशी व्यवहार से संतुष्ट नहीं है। लंदन से वापस आए श्याम अपनी पत्नी, पिता और चारों ओर के परिवेश को अंग्रेजी संस्कार से ओत-प्रोत रखना चाहता है। एक ओर अंग्रेजी सभ्यता के दुर्गुण को भी गुणों से बढकर मानते हैं तो दूसरी ओर उनके रूढिवादी पिता ने उसे गोबर और गोमुत्र से पवित्र कराना चाहते हैं। पत्नी से इस बात को सुनकर श्याम फिर से इंडिया को भला-बुरा कहने लगता है। श्याम को इस इष्ठधर्मिता का फल भी बहुत जल्दी निकलता है। वह रात को अपनी पत्नी को अंग्रेजी की नकल में मिलने को छिपकर आता है। चोेर समझकर जयकिशन और पंडित दोनों उसे पीटने लगते हैं। बाद में उन्हें पता चलता है कि श्याम है। जयकिशन उनके प्रति सहानुभूति प्रकट करता है।
इस नाटक में नाटककार ने अपने देश के बढ़ते पश्चिमीकरण की बहतर प्रस्तुती की है। किस तरह हम अपने परंपरागत मूल्यों को भूलकर केवल देखा-देखी अमेरिका अंग्रेजी सभ्यता की नकल कर रहे हैं, इसका विवेचन अच्छे ढ़ंग से हुआ है। एक कहावत है- “जैसा देश वैसा भेस।” अर्थात हर देश काल की सभ्यता, सोच व सामाजिक मान्यताएँ उस समाज के लिए ही बेहतर होती हैं। हर समाज देश और काल के अनुसार विकास होता है। अत: एक-दूसरे देश की सभ्यता और मान्यतओं में बिलकुल फर्क होता है। इस नाटक में लेखक ने इसका स्पष्ट उल्लेख किया है। श्याम इंग्लैंड से लौट आने पर अपनी पत्नी से अंग्रेजी सभ्यता की तरह बरताव करता है, जिसको वह समझ नहीं पाती और श्याम के डांटने पर रो पड़ती है। यहाँ पर दो सामाजिक मूल्यों की टकराहट को दर्शाया है कि श्याम को मालूम है कि वह भारत वापस लौट आया है, किंतु वह अंग्रेजी सभ्यता को नहीं छोड़ है और अंग्रेजों जैसा व्यवहार करने लगता है।”3
नाटककार ने दो सभ्यताओं की मान्यताओं की टकराहट का चित्रण इस प्रकार प्रकट किया है-
श्याम- “हिंदूस्तानी आदमी बड़ी-बड़ी मूंछ लगाए पूरा जंगली दीखता है। अंग्रेज को देखा, कितना साफ चिकना, शेव किए रहता है।”
पंडित- मर न गया हो तो हमारे सपूत मूंछ क्यों मूंडाते हैं।”4
पंडित के कथन से जाहिर है कि “भारतीय सभ्यता में दाड़ी-मूंछ व सिर तभी मुंडाया जाता है, जब किसी की मृत्यु हो जाती है।”5 एक पिता की कुंटा और असहायता जो बेटे को अंग्रेजी रंग ढंग में देखकर एकदम से ही अपने आपको व्यर्थ महसूस करता है। जबकि विवेक जो दश्र्क व नाटक के बीच एक कड़ी के रूप में बरतता है, उनके माध्यम से वह कहलवाता है कि बेवकूफ यह जलवायु की बात है। जब श्याम वेशभूषा को लेकर हिंदूस्थानी पतलून की निंदा करता है तो विवेक कहता है कि यह जलवायु की बात है। इस प्रकार दो सभ्यता व संस्कृति की टकराहट को प्रदर्शित करते हुए दर्शाया है कि दोनों के जलवायु व रीति-रिवाज में कितना बड़ा अंतर है।
द्वितीय अंक के प्रारंभ में माधुरी (माथी), समीर (सैमी), रमेश (रैमी) सभी लोग एकत्र होकर तीव्र कर्ण भेदी ध्वनीवाले संगीत पर अपने कुछ अन्य हिप्पी साथियों के साथ नाचते रहते हैं। जयकिशन भी उनके साथ नाचता दिखाई पड़ता है। अब उनकी आयु लगभग 60-65 वर्ष की है। इसी नाच-गाने के बीच जया आती है, जो साधारण साड़ी इत्यादी पहनी है। उसे देखकर सभी नाच-गाना रोकते हैं। सभी उसकी साधारण वेषभूषा पर हैरान हैं। डांटते भी हैं। जया गुस्से में रहती है और उन लोगों पर चीखती है। परंतु चिलम के कश फूँकने पर उनका चेहरा खिल जाता है। तब वह बताती है कि उनके अंकल को हिप्पी बूरे लगते हैं। इसीलिए उनके माता-पिता तीन दिन से खाना नहीं दिया है और कमरे में बंद कर दिया है। इसीलिए वह साधारण कपड़े पहनकर घर से निकली है। माधुरी समीर और रमेश को वे कपड़े बूरे लगते हैं। माधुरी पूछती है कि “तुम यह कपड़े पहनकर बाहर सड़क पर कैसे आ सकी? मैं तो शरम से मर जाती। कोई साफ-धूले कपड़े पहनकर बाहर कैसे निकल पाता है।”6
आधुनिक पीÄढि़ को आधुनिकता की अर्थ को, प्रगति समझने में चूक हो रही है। प्रगती माने अंधानुकरण नहीं, अभिवृद्धि है। समाज में गरीबी और अंधविश्वास आदि को मिटाना और देश को प्रगती की ओर ले जाना है। परंतु हिप्पी सभ्यता की अंधानुकरण करनेवाले ये सभी भारतीय वेश-भूषा को लज्जीत मानकर अपने आपको ही खोखला साबित कर रहे हैं। नाटककार ने छोटे-छोटे विषयों को ध्यान में रखकर यह बताने की कोशिश की है कि ये लोग किस हद तक अंधानुकरण करते हैं। जया को एक अमेरिकन औरत रूद्राक्ष की माला देती है। जिसे जया गले में पहनती है। माधुरी उसे देखकर कहती है कि एेसी माला तो उसकी नानी पहना करती थी। तभी समीर और रमेश कहते हैं-
समीर- “अगर अमेरिकन औरत ने दी है, तो जरूर खास बात है।
रमेश- तब तो यह लेटेस्ट फैशन है।”7
श्याम और उनके पत्नी के घर आने पर उन्हें सब पता चलता है कि उनके संतान बिगड़ गए हैं। तभी विवेक का प्रवेश होता है। उनके एक हाथ और पेर की हड़्डी टूट गई हैं और बहुत घायल भी हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि मनुष्य का विवेक पूरी तरह नष्ट हो गई है। वह अब उसके घर में रहना भी नहीं चाहता। वह कहता है- “विदेशियों की नकल करना, उसी में आश्वस्त और गर्वित अनुभव करना यही तो हमारा राड्ढ्रीय चरित्र है, मैं चलू मेरा इस घर में क्या काम।”8 नाटककार ने मनुष्य का आंतरिक स्वभाव को व्यक्त किया है। जब मनुष्य अपना विवेक खो बैठता है तो वह कहीं का नहीं रहता।
श्याम जो अपने जवानी के समय नैतिक मूल्यों व सामाजिक परंपराओं के लिए अपने भारतीय समाज की खिल्ली उड़ाता था। आज उसके अपने ही बच्चों द्वारा अमेरिका की हिप्पी सभ्यता की नकल करने पर वह दु:खी हो जाता है। माधुरी रमेश के साथ शादी में विश्वास न करके संबंध जोड़ती है। वह रमेश के साथ एक ही कमरे में है। समीर उसे जानकर भी किंचित भी चिंतित नहीं है, जिससे श्याम और उनकी पत्नी अत्यंत चिंतित और दु:खी हो जाते हैं।
समीर के सेक्स क्रांति की बात सुनकर श्याम उनसे उस बारे में बहस करने लगता है। श्याम के राय में सेक्स रेवल्यूशन तो रेवल्यूशन के नाम पर कलंक है। इसका वह पूर्ण रूप से विरोध करता है और कहता है- “रेवल्यूशन! क्रांति!! रेवल्यूशन होता है-रोटी, कपड़ा और दवाई के लिए न्याय और समानता के लिए सेक्स क्रांति इसने तो रेवल्यूशन का अर्थ ही बदल दिया।”9 बाद में सेक्स रेवल्यूशन की खिल्ली उडाकर वह कहता है- “लड़ाई में जाना न पड़े, इस लिये अमरीकी जवान बाल बढाके साधु बन गये। नशा खाने लगे। यह है सेक्स रेवल्यूशन?”10 इसके उपरांत समीर खुद अपने पिता श्याम को उपदेश देकर समझाने लगता है। श्याम क्रोधित होकर समीर को मारने को बढÄता है। समीर छूटकर चला जाता है। तभी अंदर रमेश की जोर से आवाज आती है, जिसे सुनकर श्याम दरवाजा खखटाता है। अंदर से रमेश आता है तो उसे मारकर भगा देता है। माधुरी से पूछने पर वह सरलता से उत्तर देती है कि अब जमाना बदल चुका है। औरत मर्द अब एक हैं। शादी औरत कोे गुलाम बनाती है। लेकिन अब औरतें जाग गई हैं। चूल्हा जलाना, घर संभालना बंद कर दिया है, जिसे सुनकर पत्नी अत्यंत दु:खी हो जाती है। तभी माधुरी अमेरिकी औरतों की साहस से भारतीय नारी की तुलना करके कहती है कि अमरीकी औरतों में बड़ी ताकत होती है। इसी बातचीत में पत्नी को उसकी बेटी माँ बनने की खबर भी पता चलता है। हिप्पी सभ्यता के शब्दों का प्रयोग केवल वासनापूर्ति को अपना लक्ष्य मानना और अविवाहित गर्भधारण कर लेना उनके माता-पिता को भी हैरान कर देता है। इसे सुनकर अपनी बेटी को डांटने लगती है। बिना ब्याह के माँ बनना माधुरी के लिए कोई हैरान करनेवाली बात न थी। बाल्कि वह अपनी माँ को समझाती है कि यह विदेश में आम बात है। अगर रैमी इसे अपना बच्चा नहीं मानेगा तो यह ईश्वर का बच्चा कहलाएगा, यह अच्ची बात है। इस बात से माधुरी की माँ एक क्षण माधुरी को आश्चर्य से देखती है। उसे डांटते हुए वह अंदर चली जाती है।
समीर, माधुरी से क्रोधित है। वह फूट-फूट कर रोता रहता है। माधुरी के पूछने पर बताता है कि वह अपने दोस्तों को मुँह दिखाने के लायक नहीं रहा, क्योंकि उसकी बहन माधुरी को पता है कि उसके बच्चे की पिता कौन है? बल्कि उसे पता नहीं होना चाहिए था। इससे समीर शर्मिंदा महसूस कर रहा है। इस पर माधुरी कहती है कि अगली बार वह एेसी गलती नहीं करेगी। इस वार्तालाप द्वारा ज्ञात होता है कि युवा पीढ़ी आधुनिकता को मात्र अपनी सभ्यता का अपमान करना ही मानती है। इस अंधानुकरन से न केवल उनका चरित्र का अपमान हो रहा है, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा तथा सभ्यता का भी ह्वास हो रहा है। आधुनिक पीढ़ी जो हमारे आस-पास है उनके आचरण हम देख ही सकते हैं। इससे निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि हमारी देश की संस्कृति पतन की ओर बढ़ रही है। नाटककार ने सूक्षातीसूक्ष्म विचारों को व्यक्त करते हुए विदेशी संस्कृति और आचरण के आंधानुकरण करनेवालों की ओर व्यंग्य किया है।
श्याम कहता है कि अमेरिका को सेक्स रेवोल्यूशन से सबकुछ हासिल हो सकता है, एेसा नहीं है। इससे पहले पूरे समाज के लिए रोटी, कपड़ा, दवाई और न्याय तथा समानता का इंतजाम जरूरी है। क्योंकि यह समाज के लिए आवश्यक है। रेवोल्यूशन अर्थात् क्रांति समाज को ऊपर उठाने के लिए होती है न कि सामाजिक व नैतिक मूल्यों के विघटन के लिए। माधुरी के माध्यम से नाटककार कहता है कि मैं विवेक से नफरत करती थी। विवेक वास्तव में मनुष्य का सचेतन मन ही है। आज तुम्हारी बात सही लगती है। और विवेक कहता है- “समाज से विद्रोह गलत नहीं। सच्छ तो यह है कि विद्रोह से ही समाज की प्रगति होती है, लेकिनङ्ग.विद्रोह सही जो सच्छा, स्वयं अनुभूत है। नकल किया हुआ विद्रोह, विद्रोह का मजाक है। विद्रोह नहीं है।”11
नाटककार का मत है कि हमें अपने समाज में क्रांति और परिवर्तन की बात वहीं तक सोचनी चाहिए, जहाँ तक समाज उसे अपना सके। जो इस बात का ध्यान न रखकर ज्यादा ही अल्ट्रामाडर्न बनने लगते हैं उनका परिणाम निकलता है- ‘सामाजिक निष्कसन।’ नाटक के अंत में विवेक के निर्णय को समीर व माधुरी का स्वीकार करना एक प्रकार से युवा-पीढ़ी को संदेश है। नाटककार ने इस नाटक के माध्यम से उच्चवर्गीय परिवार में होनेवाले मूल्य-विघटन को उद्घाटित किया है और इस परमोन्मुख वर्तमान समाज पर व्यंग्य करते हुए लिखा है- “विदेशियों का नकल करना, उसी में आश्वस्त और गर्वीत अनुभव करना, यही तो हमारा राड्ढ्रीय चरित्र है। हमारी राड्ढ्रीय विरासत है।”12 अंतत: हम नि:संकोच कह सकते हैं कि नाटककार ने नाटक में विद्रोह और क्रांति के नाम पर वर्तमान समाज में व्याप्त सभ्यता के अंधानुकरण पर गहरा व्यंग्य किया है। यह नाटक युवा-पीढ़ी द्वारा गलत मार्ग अपनाने के दुष्परिणामों को दिखाकर नयी संवेदनाजन्य स्वस्थ जीवन-मूल्यों का संकेत भी है।
संदर्भ ग्रंथ-
1. दयाप्रकाश सिंहा - ओह अमेरिका ट्ट पृ सं ट्ट 29
2. दयाप्रकाश सिंहा ट्ट ओह अमेरिका ट्ट पृ सं ट्ट 12
3. दयाप्रकाश सिंहा ट्ट ओह अमेरिका ट्ट पृ सं ट्ट 42
4. दयाप्रकाश सिंहा ट्ट ओह अमेरिका ट्ट पृ सं ट्ट 46
5. प्रो.ए.अच्युतन, दयाप्रकाश सिंहा ट्ट नाट्य रचना धर्मिता ट्ट पृ सं ट्ट 43
6. दयाप्रकाश सिंहा ट्ट ओह अमेरिका ट्ट पृ सं ट्ट 51
7. दयाप्रकाश सिंहा ट्ट ओह अमेरिका ट्ट पृ सं ट्ट 52
8. दयाप्रकाश सिंहा ट्ट ओह अमेरिका ट्ट पृ सं ट्ट 55
9. दयाप्रकाश सिंहा ट्ट ओह अमेरिका ट्ट पृ सं ट्ट 60
10. दयाप्रकाश सिंहा ट्ट ओह अमेरिका ट्ट पृ सं ट्ट 68
11. दयाप्रकाश सिंहा ट्ट ओह अमेरिका ट्ट पृ सं ट्ट 68
12. दयाप्रकाश सिंहा ट्ट ओह अमेरिका ट्ट पृ सं ट्ट 68
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